हम किस तरह खाएं पैसा ,ये हरगिज भुला सकते नहीं ,
हम सर तो झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |
बड़ी ही सूझ- बुझ से मंहगाई हम बड़ा तो सकते हैं ,
जात धर्म के नाम पर सभी को लड़ा तो सकते हैं ,
देश चले या ना चले बड़े -बड़े कारखाने चला तो सकते हैं ,
चोरी ,ठगी ,बेईमानी हमारा हक़ है ,सबको बता तो सकते हैं |
बहुत कुछ समझ रही है अब जनता जूत्ते,चप्पल भी मारने लगी है ,
छोटी मोटी रैलियां कर -करके अब तो हमें ललकारने भी लगी है ,
चप्पल ,जूते तो ठीक है ,पर गोली हम खा सकते नहीं ,
हम सर तो झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |
इस देश को आजाद कराने के लिए ,वीरों की घूमती थी टोलियाँ ,
सनकी थे वो जिन्होंने सीने पर खाई थी गोलियां ,
और हम तो ऐसे हैं ,देश की भी लगा सकते हैं बोलियाँ ,
सजा कोई नहीं दे सकता है हमें ,चाहे जिसकी भी उतारें चोलियाँ |
इस देश को करना है बर्बाद ,चाहे सरकार चला सकते नहीं ,
हम सर तो झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |
bahut hi sateek v samyik prastuti-----
ReplyDeletepoonam
बहुत बढ़िया सटीक प्रस्तुती, सुंदर रचना,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
वाह , एकदम कनपट्टी पर सटा के मारे हैं सटाक सटाक । बहुत खूब एकदम सन्नाट
ReplyDelete:)
...bahut badhiya likha hai Suresh, mujhe achhaa laga!
ReplyDeleteइस देश को आजाद कराने के लिए ,वीरों की घुमती थी टोलियाँ ,
ReplyDeleteसनकी थे वो जिन्होंने सिने पर खाई थी गोलियां ,
और हम तो ऐसे हैं ,देश की भी लगा सकते हैं बोलियाँ ,
सजा कोई नहीं दे सकता है हमें ,चाहे जिसकी भी उतारें चोलियाँ |
इस देश को करना है बर्बाद ,चाहे सरकार चला सकते नहीं ,
हम सर तो झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |
सुरेश भाई भाव गत सौन्दर्य है रचना में अर्थ गर्भित भी है कृपया "घुमते "के स्थान पर "घूमते " और "सिने"के स्थान पर सीने कर लें.ब्लॉग पर दस्तक बनाए रहिये .
लाजवाब पेरोडी है ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteबेहतर जानकारी दी है आपने नेट से दूर रहने के कारण कमेन्ट मे देरी हूई है
ReplyDeleteआजकल वीर रस की ऐसी रचनाये देखने में कम आती हैं आजकल मोहब्बतो के रस ज्यादा घूम रहे हैं अंतरजाल में । ऐसी रचनाओ की जरूरत है । शब्दा के ऐसे ही करिश्मे से आजादी की गाथा लिखी गयी थी
ReplyDeletehighly appreciable...Really very few poems are written today targetting the corruption directly .and that too done with perfection
ReplyDeleteauperlike.
बहुत बढ़िया..........तीखी रचना....
ReplyDeleteसादर
अनु
katu sach......
ReplyDeletesatik bat...
ReplyDeleteबिलकुल सच...सटीक प्रस्तुति..
ReplyDeleteबड़ी ही सूझ- बुझ से मंहगाई हम बड़ा तो सकते हैं ,
ReplyDeleteजात धर्म के नाम पर सभी को लड़ा तो सकते हैं ,
.... बढ़िया सटीक प्रस्तुती
इस देश को करना है बर्बाद ,चाहे सरकार चला सकते नहीं ,
ReplyDeleteहम सर तो झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |
वाह... बहुत ही सटीक रचना, शुभकामनाएं.
रामराम
जात धर्म के नाम पर सभी को लड़ा तो सकते हैं ,
ReplyDelete.... बढ़िया सटीक प्रस्तुती
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है सुरेश जी
सच कड़वा लगता है लेकिन कहना भी पड़ता है.
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