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Sunday, July 22

आज के चन्द नेता


हम किस तरह खाएं पैसा ,ये हरगिज  भुला सकते नहीं ,
हम  सर तो  झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |
बड़ी ही सूझ- बुझ  से मंहगाई   हम बड़ा तो सकते हैं ,
जात धर्म के नाम पर सभी  को लड़ा तो सकते हैं ,
देश चले या ना चले बड़े -बड़े कारखाने चला तो सकते हैं ,
चोरी ,ठगी ,बेईमानी हमारा हक़ है ,सबको बता तो सकते हैं |
बहुत कुछ समझ रही है अब जनता जूत्ते,चप्पल  भी मारने लगी है ,
छोटी मोटी रैलियां कर -करके अब तो हमें ललकारने भी लगी है ,
चप्पल ,जूते तो ठीक है ,पर गोली हम खा सकते नहीं ,
हम  सर तो  झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |
इस देश को आजाद कराने के लिए ,वीरों की घूमती  थी टोलियाँ ,
सनकी थे वो जिन्होंने सीने  पर खाई थी गोलियां ,
और हम तो ऐसे हैं ,देश की भी लगा सकते हैं बोलियाँ ,
सजा कोई नहीं दे सकता है हमें ,चाहे जिसकी भी उतारें चोलियाँ |
इस देश को करना है बर्बाद ,चाहे सरकार चला सकते नहीं ,
हम  सर तो  झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |

17 comments:

  1. बहुत बढ़िया सटीक प्रस्तुती, सुंदर रचना,,,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,

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  2. वाह , एकदम कनपट्टी पर सटा के मारे हैं सटाक सटाक । बहुत खूब एकदम सन्नाट
    :)

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  3. ...bahut badhiya likha hai Suresh, mujhe achhaa laga!

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  4. इस देश को आजाद कराने के लिए ,वीरों की घुमती थी टोलियाँ ,
    सनकी थे वो जिन्होंने सिने पर खाई थी गोलियां ,
    और हम तो ऐसे हैं ,देश की भी लगा सकते हैं बोलियाँ ,
    सजा कोई नहीं दे सकता है हमें ,चाहे जिसकी भी उतारें चोलियाँ |
    इस देश को करना है बर्बाद ,चाहे सरकार चला सकते नहीं ,
    हम सर तो झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |
    सुरेश भाई भाव गत सौन्दर्य है रचना में अर्थ गर्भित भी है कृपया "घुमते "के स्थान पर "घूमते " और "सिने"के स्थान पर सीने कर लें.ब्लॉग पर दस्तक बनाए रहिये .

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  5. लाजवाब पेरोडी है ... बहुत खूब ...

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  6. बेहतर जानकारी दी है आपने नेट से दूर रहने के कारण कमेन्‍ट मे देरी हूई है

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  7. आजकल वीर रस की ऐसी रचनाये देखने में कम आती हैं आजकल मोहब्बतो के रस ज्यादा घूम रहे हैं अंतरजाल में । ऐसी रचनाओ की जरूरत है । शब्दा के ऐसे ही करिश्मे से आजादी की गाथा लिखी गयी थी

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  8. highly appreciable...Really very few poems are written today targetting the corruption directly .and that too done with perfection
    auperlike.

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  9. बहुत बढ़िया..........तीखी रचना....
    सादर
    अनु

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  10. बिलकुल सच...सटीक प्रस्तुति..

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  11. बड़ी ही सूझ- बुझ से मंहगाई हम बड़ा तो सकते हैं ,
    जात धर्म के नाम पर सभी को लड़ा तो सकते हैं ,
    .... बढ़िया सटीक प्रस्तुती

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  12. इस देश को करना है बर्बाद ,चाहे सरकार चला सकते नहीं ,
    हम सर तो झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |

    वाह... बहुत ही सटीक रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  13. जात धर्म के नाम पर सभी को लड़ा तो सकते हैं ,
    .... बढ़िया सटीक प्रस्तुती
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है सुरेश जी

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  14. सच कड़वा लगता है लेकिन कहना भी पड़ता है.

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