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Sunday, July 29

भाई बहन का पवित्र बंधन




भाई बहन का ये पवित्र त्यौहार पुरे  भारत वर्ष में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है |बहने अपने भाई की कलाई पर राखी (रक्षा कवच )बाँधती हैं | ये कवच जहाँ भाई की तो रक्षा करता है  पर बहन की रक्षा करने की भी याद दिलाता है |पर आज कल इस त्यौहार की मात्र ओपचारिकता  ही रह गयी है  | वैसे बाज़ारों में खूब रौनक होती है |त्यौहार भी खूब धूम धाम से मनाया जाता है |आजकल टी वी पर और अखबारों में हर रोज  नई-नई ख़बरें आती रहती हैं |किसी दहेज़ लोभी ने विवाहिता को जला दिया, कोई सरेआम किसी लड़की को सडक पर नंगा कर रहा है ,ये बेशर्म ये नहीं सोचते की ये भी किसी की बहने होगी इन बहनों का  भी कोई भाई होगा, जो अपनी बहन को तुमसे भी ज्यादा प्यार करता होगा| आजकल इस राखी के पवित्र धागे में वो ताकत नहीं रही   ,या फिर भाइयों में इतनी ताकत नहीं रही की अपनी बहनों की रक्षा कर सके ,या समाज ही इतना गन्दा हो गया है की इतने पवित्र रिश्ते की अहमियत को भी नहीं समझ रहा है |
हमें इस पवित्र बंधन को दिल से मानना होगा तभी राखी बाँधने का मकसद सफल होगा |
........आप सभी को रक्षा बंधन की अग्रिम शुभकामनाएं.........

Sunday, July 22

आज के चन्द नेता


हम किस तरह खाएं पैसा ,ये हरगिज  भुला सकते नहीं ,
हम  सर तो  झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |
बड़ी ही सूझ- बुझ  से मंहगाई   हम बड़ा तो सकते हैं ,
जात धर्म के नाम पर सभी  को लड़ा तो सकते हैं ,
देश चले या ना चले बड़े -बड़े कारखाने चला तो सकते हैं ,
चोरी ,ठगी ,बेईमानी हमारा हक़ है ,सबको बता तो सकते हैं |
बहुत कुछ समझ रही है अब जनता जूत्ते,चप्पल  भी मारने लगी है ,
छोटी मोटी रैलियां कर -करके अब तो हमें ललकारने भी लगी है ,
चप्पल ,जूते तो ठीक है ,पर गोली हम खा सकते नहीं ,
हम  सर तो  झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |
इस देश को आजाद कराने के लिए ,वीरों की घूमती  थी टोलियाँ ,
सनकी थे वो जिन्होंने सीने  पर खाई थी गोलियां ,
और हम तो ऐसे हैं ,देश की भी लगा सकते हैं बोलियाँ ,
सजा कोई नहीं दे सकता है हमें ,चाहे जिसकी भी उतारें चोलियाँ |
इस देश को करना है बर्बाद ,चाहे सरकार चला सकते नहीं ,
हम  सर तो  झुका सकते हैं ,पर सर कटा सकते नहीं |

Sunday, July 8

ना करो प्रकृति से खिलवाड़















है आज हमें जिसकी सबसे ज्यादा जरुरत,
आदि हो गए हैं ,इसके बिना तो हम  बेजान मूर्त ||
 सब जानते हैं ,वो है चंचला ,तड़ीका ,बिजली ,
 नज़र ही नहीं आती उड़ा रही है सबकी खिल्ली||
 मैंने भी दो चार बुजर्गवारों से की थी बात ,
पहले कैसे कटता था दिन और कैसे कटती थी रात ||
किसी से सुना है पहले बिजली नहीं होती थी ,
तंग  थे पहले भी या ये जनता ऐसे ही रोती थी ||
हंसने लगे और  बोले बेटा सब कुदरत का खेल है ,
वो होते थे बहुत ही हसीं दिन अब तो घर भी जेल है ||
गर्मी सर्दी बरसात पहले भी सब कुछ होता था ,
सभी आराम से जीते थे, ऐसे नहीं कोई रोता था ||
पहले  पैसे की तो थी कमी ,जेबे खाली  होती थी ,
अस्सी की उम्र में भी चेहरे पर लाली होती थी||
सादा खाना, सादा पीना, सादा जीवन जीते थे ,
बहुत ही कम थी बीमारियाँ सौ -सौ वर्ष जीते थे ||














आज का इंसान प्रदूषण ही प्रदूषण फैला रहा है ,
काटकर हरे भरे वृक्ष बहुमंजिलें भवन बना रहा है ||
न रहा वो खाना पीना बस पेट ही भर रहें हैं ,
जहर ही मिलता है हर चीज में बस  यूँ ही मर रहे हैं ||
वो बोले न करो प्रकृति से खिलवाड़ और न ख़तम करो हरियाली ,
फिर एक दिन देखना तुम्हारे चेहरों पर भी आ जायेगी लाली ||
भावुक हो गया मैं और आँखों में आ गया था पानी ,
सोचा आने वाले बच्चे कैसे गुजारेंगें बचपन और कैसे जवानी ||

Friday, July 6

पानी रे पानी


मचा हुआ है चारों तरफ बिजली पानी का हाहाकार,
न जाने कब आएगी ,वो प्यारी -प्यारी मानसून की बहार |
इस कुदरत के खेल भी हैं, अजब- गजब न्यारे -न्यारे ,
कहीं पर सूखाग्रस्त और कहीं पर बाढ़ से मर रहें हैं बेचारे |
जब नाममात्र या बिलकुल ना आये पानी तो सबको रुला जाता है ,
जब जरुरत से ज्यादा आये पानी ,तो कहर बरपा जाता है |
तेरी लीला भी न्यारी भगवन ,तू ही सबको उदारता है ,
किसी को तो  सुखा के और  किसी को डूबा के मारता है |