Click here for Myspace Layouts

Sunday, July 17

अपनी -अपनी डफली अपना -अपना राग भाग डी के बोश भाग -भाग -भाग

 आज कल एक फिल्म बड़े जोर शोर से चर्चा में है और फिल्म में मज़ा भी बहुत आया होगा बहुत अच्छी बात है मज़ा आना भी चाहिए क्योंकि हम फिल्मों में मज़ा लेने ही तो जाते हैं परन्तु मुझे यह फिल्म देखकर बिलकुल भी मज़ा नहीं आया उलटे मेरा मन इसे देखकर बहुत उदास हो गया की क्या हो रहा है? कहाँ जा रहा है हमारा युवा समाज ?कौनसी दिशा देना चाह रहे हैं हमारे महत्वाकांक्षी निर्माता निर्देशक इस समाज  को? क्या इस  प्रकार  हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचा पायेंगे ? जिस प्रकार आजकल फिल्मों में गालियों का फैशन बढ़  गया है तो क्या हम फिल्मों में नयी नयी  गालियाँ सुनने जाते हैं वोह भी इतनी गन्दी व भद्दी कि गाली को खुद के गाली होने पर ही शर्म आ जाए अभी यह बात भी उठ रही है कि सेंसर वालों ने इसे पास कैसे कर दिया ? वोह आपको मैं बताता हूँ कि कैसे सेंसर वाले फिल्म पास कर देते हैं मुझे लगता है फिल्म के अंदर सबसे पहले फिल्म का निर्माता निर्देशक कौन है कैसी फ़िल्में बनाता है देखा जाता है हीरो हिरोइन कौन है इन्हें इग्नोर कर दिया जाता है और इतने बड़े और साफ़ छवि वालों  कि फ़िल्में सेंसर वाले इतने ध्यान से नहीं देखते अगर देखते भी हैं  तो बड़ी चतुराई और सोची समझी योजना से उन्हें देखने नहीं दिया जाता क्योंकि निर्माता निर्देशकों के चमचों को पता होता है कि कितने अंतराल के बाद गाली आनी है  जैसे ही गाली या अश्लील सामग्री आने को होती है उनके द्वारा छोड़े गए चमचों द्वारा  बड़ी शालीनता से समोसे आदि सेंसर वालों के सामने पेश कर दिए जाते हैं लीजिये सर गरमा गर्म समोसे मैडम आप भी लीजिये प्लीज और इसी सिलसिले में गाली या अश्लील सामग्री वाला सीन निकल जाता है फिर दोबारा जब सीन आने को होता है चमचे दुबारा फिर जिन्न कि भांति ठंडा आदि लेकर हाजिर हो जाते हैं अब इतना खा पीकर ऊपर  से  ए.सी. की ठंडी-ठंडी हवा आ रही हो तो  नींद आनी तो लाजमी है धीरे धीरे नींद आ जाती है और बीच में कभी कभी नींद खुलती है धीरे- धीरे  फिल्म भी सामने से निकलती  जाती है  बाद में सेंसर वाले सफाई देते हैं कि फिल्म अच्छी है कोई भाग रहा था और जोर-जोर  से आंधी आ रही थी भला बीच -बीच में आँख खुलेगी तो कोई न कोई भागता नजर तो आएगा ही और इस प्रकार हो हल्ला करके हम सारा दोष सेंसर के मथ्थे मढ़कर अपने अपने रास्ते चल देते हैं अपने योगदान से फिल्म को हिट बना देते हैं जरा सोचिये दोस्तों किस प्रकार हम अपने आदर्शों और मूल्यों कि रक्षा कर सकेंगे और आने वाली पीढ़ियों को क्या देकर जायेंगे इस संसार में सभी आजाद हैं सभी कि अपनी अपनी सोच है दूसरों कि गलत  सोच को अपने ऊपर लादना भी हमारी अपनी बुद्धि  और विवेक का हिस्सा है

2 comments:

  1. Helo Suresh ji,


    Aap n bhut hi acha likha h

    ReplyDelete
  2. हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं संजय भास्कर हार्दिक स्वागत करता हूँ.

    संजय भास्कर
    फतेहाबाद ( हरियाणा )

    ReplyDelete